सहायक शिक्षकों के 69000 पदों के लिए हुई भर्ती परीक्षा के मामले में शुक्रवार को विभिन्न पक्षकारों द्वारा की जा रही बहस पूरी हो गई।
न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान ने सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित कर दिया। अदालत जल्द ही इस मामले में फैसला सुनाएगी।
हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में इस मामले की सुनवाई पिछले कई दिनों से चल रही है। भर्ती परीक्षा 6 जनवरी को आयोजित की गई थी और 7 जनवरी को राज्य सरकार ने इसके लिए अर्हता अंक नए सिरे से तय करते हुए शासनादेश जारी करते हुए सामान्य वर्ग के लिए 65 व ओबीसी के लिए 60 फीसदी अर्हता अंक तय किए थे।
यह भी दलील दी गई थी कि सरकार ने सोची समझी रणनीति के तहत अर्हता अंक तय करे गए जिससे शिक्षामित्रों को भर्ती से रोका जा सके। इस मामले में जब अदालत ने सरकार को पूर्व की परीक्षा के भांति 45 व 40 फीसदी अर्हता अंक रखे जाने के विकल्प पर जानकारी चाही थी तब सरकार की तरफ से यह दलील दी गई थी ऐसा शिक्षा की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए किया गया है और इसी वजह से वह मेरिट से समझौता नहीं कर सकती।
सरकार की तरफ से यह भी तर्क दिया गया था कि सहायक शिक्षकों की नियुक्ति के लिए पूर्व में हुई परीक्षा में एक लाख सात सौ अभ्यर्थी शामिल हुए थे जिसके विपरीत इस बार 6 जनवरी 2019 को हुई परीक्षा में चार लाख दस हजार अभ्यर्थी उपस्थित हुए। बड़ी संख्या में अभ्यर्थियों की उपस्थिति के मद्देनजर अर्हता अंक तय करा जाना जरूरी हो गया था।
इस मामले में शुक्रवार को सारे पक्षकारों की बहस पूरी हो गई। अदालत ने इस पर फैसला सुरक्षित कर लिया है। अदालत अब इस मामले में विस्तृत फैसला सुनाएगी।
साभार अमरउजाला. कॉम
न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान ने सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित कर दिया। अदालत जल्द ही इस मामले में फैसला सुनाएगी।
हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में इस मामले की सुनवाई पिछले कई दिनों से चल रही है। भर्ती परीक्षा 6 जनवरी को आयोजित की गई थी और 7 जनवरी को राज्य सरकार ने इसके लिए अर्हता अंक नए सिरे से तय करते हुए शासनादेश जारी करते हुए सामान्य वर्ग के लिए 65 व ओबीसी के लिए 60 फीसदी अर्हता अंक तय किए थे।
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याचियों ने सरकार के इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए दलील दी थी कि एक बार लिखित परीक्षा होने के बाद अर्हता अंक तय करा जाना नियम संगत नहीं है।यह भी दलील दी गई थी कि सरकार ने सोची समझी रणनीति के तहत अर्हता अंक तय करे गए जिससे शिक्षामित्रों को भर्ती से रोका जा सके। इस मामले में जब अदालत ने सरकार को पूर्व की परीक्षा के भांति 45 व 40 फीसदी अर्हता अंक रखे जाने के विकल्प पर जानकारी चाही थी तब सरकार की तरफ से यह दलील दी गई थी ऐसा शिक्षा की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए किया गया है और इसी वजह से वह मेरिट से समझौता नहीं कर सकती।
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सरकार की तरफ से बहस कर रहे अधिवक्ताओं ने अदालत में कहा अर्हता अंक तय करने का सरकार का आदेश सही है क्योंकि उसकी मंशा क्वालिटी एजुकेशन देने की है और उसके लिए क्वालिटी अध्यापकों की जरूर है।सरकार की तरफ से यह भी तर्क दिया गया था कि सहायक शिक्षकों की नियुक्ति के लिए पूर्व में हुई परीक्षा में एक लाख सात सौ अभ्यर्थी शामिल हुए थे जिसके विपरीत इस बार 6 जनवरी 2019 को हुई परीक्षा में चार लाख दस हजार अभ्यर्थी उपस्थित हुए। बड़ी संख्या में अभ्यर्थियों की उपस्थिति के मद्देनजर अर्हता अंक तय करा जाना जरूरी हो गया था।
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याचियों की ओर से इसका लगातार विरोध किया गया और यह दलील दी गई थी कि अगर सरकार को अर्हता अंक तय करने हैं तो पूर्व में हुई शिक्षक भर्ती परीक्षा के समान करे।इस मामले में शुक्रवार को सारे पक्षकारों की बहस पूरी हो गई। अदालत ने इस पर फैसला सुरक्षित कर लिया है। अदालत अब इस मामले में विस्तृत फैसला सुनाएगी।
साभार अमरउजाला. कॉम
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