कोरोना का प्रकोप बढ़ते ही निजी स्कूल प्रबंधकों ने शिक्षकों की छुट्टी
करनी शुरू कर दी है। जूनियर कक्षाओं के अधिकांश शिक्षकों को जबरन छुट्टी पर भेज दिया गया है।
सीनियर कक्षाओं में सिर्फ मुख्य विषयों के शिक्षकों को ही नौकरी पर रखा गया है। शेष को बाहर का रास्ता दिखा दिखाया जा रहा है।
पिछले वर्ष कोरोना के फैलने के साथ ही निजी स्कूलों के शिक्षकों पर भारी आफत आई थी।
स्कूलों ने भले ही लोगों को फीस में राहत ना दी हो। बिना फीस लिए बच्चों को ऑनलाइन कक्षाओं से ना जोड़ा हो मगर शिक्षकों के वेतन के नाम पर उन्होंने कोरोना का रोना रो दिया।
खर्च कम होने के बाद भी अधिकतर स्कूलों ने पूरे वर्ष शिक्षकों को आधा वेतन दिया।
बहुत से स्कूलों ने तो 30 फीसदी वेतन देकर ही काम चलाया। इस बार सत्र की शुरुआत में शिक्षकों को बुलाया गया। जैसे ही सरकार ने स्कूलों की छुट्टी बढ़ाई वैसे ही स्कूल संचालकों के कान खड़े हो गए।
उन्हें यह लगने लगा कि इस बार भी सत्र नियमित रूप से नहीं चल पाएगा। ऐसे में अप्रैल के दूसरे सप्ताह में ही शिक्षकों को बाहर का रास्ता दिखाना शुरू कर दिया।
किसी ने 11 तो किसी ने निकाले 15 टीचर
शिक्षकों के दम पर ही स्कूल संचालक वर्षों से कमाई करते रहे हैं। संकट आया तो इन शिक्षकों से तुरंत ही मुंह मोड़ लिया।
एक हफ्ते की बात की जाए तो किसी स्कूल ने 11 तो किसी स्कूल ने 15 शिक्षकों को बाहर का रास्ता दिखा दिया है।
शिक्षकों को आधे वेतन में काम करने पर मजबूर किया जा रहा है। बेचारे शिक्षक कहीं अपनी शिकायत भी नहीं कर पा रहे हैं।
कला, संगीत और खेल पर सबसे अधिक मार
स्टाफ कम करने की सबसे अधिक मार आर्ट, क्राफ्ट, संगीत, खेल आदि सहगामी गतिविधियां वाले शिक्षकों पर पड़ी है। इन लोगों को सबसे पहले बाहर किया गया।
इनमें से बहुत से शिक्षक ऐसे भी हैं जो 10 वर्षों से एक ही स्कूल में नौकरी कर रहे थे। इसके बाद भी उन्हें बिना कोई नोटिस दिए नौकरी से बाहर कर दिया गया।
यदि जल्द स्कूल नहीं खुले तो नौकरी खोने वाले शिक्षकों की संख्या और बढ़ जाएगी।
सुनिए इनकी बात
मजबूरी में किया होगा छंटनी का फैसला
इंडिपेंडेंट स्कूल एसोसिएशन के अध्यक्ष पारुष अरोड़ा ने कहा कि अधिकतर स्कूल भी कोरोना के समय में आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं।
अभी भी लगभग 20 प्रतिशत बच्चों की फीस नहीं आई है। जो आई है वह भी आधी अधूरी है।
इस सत्र में भी यह संकट आने के पूर्वानुमान हैं। कुछ स्कूलों को मजबूरी में छंटनी का फैसला लेना पड़ा।
अमानवीय रहा स्कूलों का व्यवहार
मानवाधिकार कार्यकर्ता मुहम्मद खालिद जीलानी ने कहा कि कोरोना काल में निजी स्कूलों के प्रबंधकों का व्यवहार बहुत ही अमानवीय रहा है।
अच्छी आमदनी के बाद भी शिक्षकों को नौकरी से निकाला जा रहा है। हम इसकी शिकायत मानवाधिकार आयोग में करेंगे। पीड़ित शिक्षकों को खुल कर अपनी शिकायत करनी चाहिए।
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