भारत के सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है की प्रमोशन में आरक्षण को, मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता नहीं दी जा सकती है। इसी के साथ उन सभी कर्मचारियों का डिमोशन किया जाएगा, जिन्हें आरक्षण के कारण प्रमोशन मिला था। उत्तर प्रदेश राज्य शिक्षा विभाग ने प्रमोशन के लिए आरक्षण का लाभ लेने वाले शिक्षकों की लिस्टिंग शुरू कर दी है। ऐसे सभी कर्मचारी और शिक्षकों की सर्विस बुक मांगी गई है। सबका प्रमोशन रद्द कर दिया जाएगा।
लखनऊ की मीडिया से मिली जानकारी के अनुसार उत्तर प्रदेश के राज्य शिक्षा विभाग ने दिनांक 15 नवंबर 1997 से लेकर 28 अप्रैल 2012 तक जितने भी कर्मचारी और शिक्षकों को आरक्षण का लाभ देकर प्रमोशन दिया गया था, उन सब की सर्विस बुक और लिस्ट मांगी है। बताया जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने शासकीय सेवा में, प्रमोशन के लिए आरक्षण को मौलिक अधिकार मानने से इनकार करते हुए यह भी कहा कि राज्यों को SC-ST के प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता के आकलन के लिए डेटा इकट्ठा करना अनिवार्य है।
केंद्र सरकार ने अपील की थी
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया था कि सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) के कर्मचारियों की पदोन्नति में आरक्षण को रद्द करने से कर्मचारियों में अशांति उत्पन्न हो सकती है। इसके विरोध में विभिन्न मुकदमें दायर किये जा सकते हैं। इससे पहले कोर्ट ने सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिये पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता का निर्धारण करने के लिये मापदंड तय करने से इनकार कर दिया था।
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