छह जनवरी की लिखित परीक्षा का परिणाम फिलहाल घोषित नहीं हो सकेगा।
हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने 17 जनवरी को दिया गया यथास्थिति बरकरार रखने का आदेश अगली सुनवाई तक बढा दिया है।
मामले की अंतिम सुनवाई के लिए 29 जनवरी की तिथि तय की गयी है।
हालांकि 22 जनवरी को शिक्षक भर्ती का परिणाम घोषित होना था।
यह आदेश न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान की एकल सदस्यीय पीठ ने मोहम्मद रिजवान व अन्य समेत सैकड़ों अभ्यर्थियों की ओर से दाखिल कुल 33 याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए दिया।
सोमवार को मामले की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार व याचियों के अधिवक्ताओं के बीच लगभग दो घंटे तक जोरदार बहस चली।
सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत चंद्रा ने सर्वोच्च न्यायालय के एक निर्णय के हवाले से सरकार के 7 जनवरी के उस आदेश को सही बताया जिसके तहत अनारक्षित व आरक्षित वर्ग के लिए क्वालिफाइंग मार्क्स 65 व 60 प्रतिशत तय किया गया है।
सरकार की ओर से कहा गया कि अध्यापक पर शिक्षा देने जैसी अति महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है लिहाजा इस पद पर नियुक्ति के लिए मेरिट से समझौता नहीं किया जा सकता। पिछले साल की तुलना में इस बार क्वालिफाइंग मार्क्स बढाने के निर्णय का यह कहते हुए बचाव किया गया कि इस बार अभ्यर्थियों की संख्या काफी ज्यादा थी।
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वहीं याची पक्ष के अधिवक्ताओं की दलील थी कि यह कवायद सरकार ने सिर्फ शिक्षामित्रों को बाहर करने के लिए की है। कहा गया कि याचीगण शिक्षामित्र थे जिन्हें सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से दो मौके मिले हैं और इस बार उनका आखिरी मौका है।
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ऐसे में लिखित परीक्षा होने के बाद क्वालिफाइंग मार्क्स तय करना पूरी तरह से असंवैधनिक है। याची पक्ष की ओर से कहा गया जहां तक मेरिट का सवाल है, टीईटी परीक्षा सहायक अध्यापक पद की योग्यता के लिए ही कराई जाती है।
वहीं कुछ अभ्यर्थियों की ओर से कोर्ट के समक्ष प्रार्थना पत्र प्रस्तुत कर पार्टी बनाए जाने की मांग की गई। ये अभ्यर्थी सरकार के पक्ष का समर्थन कर रहे हैं। याचियों की ओर से पार्टी बनाए जाने की मांग का विरोध किया गया।
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सभी पक्षों की बहस सुनने के बाद न्यायालय ने राज्य सरकार को जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए चार दिनों का समय दिया जबकि उसके 24 घंटे के भीतर याची पक्ष को प्रत्युत्तर देना होगा।
साभार हिन्दुस्तान. कॉम
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