बिहार के विश्वविद्यालयों में सहायक प्राध्यापक बनने की चाह रखने
वालों को बड़ी राहत मिल गयी है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की घोषणा के बाद बिहार के विश्वविद्यालयों में सहायक प्राध्यापक के पदों पर नियुक्ति के लिए परिनियम-2020' में संशोधन कर दिए गए हैं।
इसके साथ ही, बिहार के अभ्यर्थियों की यह आशंका भी खत्म हो गयी कि परिनियम की वजह से उनकी दावेदारी कमजोर होगी।
परिनियम में मुख्य रूप से एमफिल डिग्री पर वेटेज समाप्त कर दिया गया है और यूजीसी रेगुलेशन, 2009 जिस विश्वविद्यालय में लागू होने की तिथि से मान्य कर दिया गया है।
इसके पहले इस डिग्री के लिए निबंधित अभ्यर्थी यदि 2009 रेगुलेशन की पांच शर्तों को पूरा करते हैं तो उनकी दावेदारी मान्य होगी। शोध पत्रों के अंतर्राष्ट्रीय जनरल में भी प्रकाशन से छूट दे दी गई है।
राज्य सरकार के शिक्षा विभाग के प्रस्ताव और परिनियम के लिए गठित कुलपतियों की तीन सदस्यीय समिति के मंतव्य पर मुख्य चार संशोधनों पर बिहार के कुलाधिपति सह राज्यपाल फागू चौहान ने अपनी मुहर लगा दी। शनिवार की शाम को राजभवन के प्रधान सचिव चैतन्य प्रसाद ने इसे अधिसूचित कर दिया।
गौरतलब है कि इसी माह 10 अगस्त को राजभवन ने सहायक प्राध्यापकों की बहाली का परिनियम घोषित किया था। उसके बाद विभिन्न स्तरों पर अभ्यर्थियों की ओर से यह मांग उठने लगी कि परिनियम की शर्तें ऐसी हैं कि बाहरी अभ्यर्थियों को इसका अधिकाधिक लाभ मिलेगा।
उसके बाद मुख्यमंत्री के निर्देश पर शिक्षा विभाग ने चांसलर से इसमें संशोधन का प्रस्ताव रखा।
शनिवार को अधिसूचित संशोधित परिनियम में चार ब दलाव किए गए हैं। पहला संशोधन यूजीसी के 11 जुलाई 2009 रेगुलेशन को लेकर है।
बिहार में इसके आधार पर अधिनियम बनकर राजभवन से नवम्बर 2012 में अधिसूचित किया गया। इसके बाद विभिन्न तिथियों और वर्षों में इसे अलग-अलग विश्वविद्यालयों ने लागू किया। संशोधन में कहा गया है कि राज्य के विश्वविद्यालयों में 11 जुलाई 2009 से यूजीसी रेगुलेशन 2009 लागू होने की अवधि में पीएचडी की उपाधि के लिए पंजीकृत इस रेगुलेशन की पांच शर्तों को पूरा करने एवं तत्संबंधी विश्वविद्यालय के कुलसचिव एवं संकायाध्यक्ष द्वारा इसके सत्यापन किए जाने की स्थिति में उन्हें नेट, स्लेट, सेट की अर्ह्यता की अपेक्षा से छूट प्रदान की जाएगी।
हालांकि इसके लिए 11.07.2209 के पूर्व पीएचडी, एमफिल के लिए पंजीकृत अभ्यर्थियों को पूर्व पांच शर्तों को पूरी करनी होगी।
इनमें अभ्यर्थी को पीएचडी की उपाधि केवल नियमित पद्धति से प्रदान की गई हो, पीएचडी शोध प्रबंध का मूल्यांकन कम से कम दो बाह्य परीक्षकों द्वारा किया गया हो, पीएचडी के लिए अभ्यर्थी की एक खुली मौखिक परीक्षा आयोजित हुई हो, अभ्यर्थी ने पीएचडी कार्य से अपने दो अनुसंधान पत्रों को (एस संदर्भित जनरल) प्रकाशित किया हो, अभ्यर्थी ने किसी मानक सम्मेलनों, विचार गोष्ठियों में पीएचडी कार्य पर आधारित दो पत्र प्रस्तु किया हो।
परिनियम में दूसरा और महत्वपूर्ण संशोधन एमएफिल की डिग्री को लेकर किया है और इसके आधार पर दिए जाने वाले 7 अंक (60 फीसदी या ऊपर) तथा 5 अंक (60 फीसदी से कम) को विलोपित कर दिया है। तीसरा संशोधन 10 अगस्त के पिरिनयम की कंडिका तीन में किया गया है।
इसमें अब अंतर्राष्ट्रीय (स्कोपस) जनरल को विलोपित करते हुए दो अनुसंधान कार्य को प्रकाशित करना अनिवार्य किया है, जिसमें से कम से कम एक संदर्भित जनरल में प्रकाशित हुआ हो।
उसी तरह चौथा संशोधन शोध प्रकाशन को लेकर किया गया है। इसमें भी स्कोपस को विलोपित कर शोध प्रकाशन को समीक्षित अथवा यूजीसी द्वारा सूचीबद्ध जर्नल में प्रकाशित प्रत्येक शोध प्रकाशन के लिए 2 अंक तय किया गया है।
No comments:
Post a Comment