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अब बिना PhD बन सकेंगे असिस्टेंट प्रोफेसर, यूजीसी का यह नया नियम जानिए

कॉलेज या यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर बनने के लिए अब पीएचडी की डिग्री जरूरी नहीं होगी। यूजीसी के चेयरमैन एम जगदीश कुमार ने एक कार्यक्रम में यह बताया कि अब नए नियमों के पीएचडी को अनिवार्य योग्यता की श्रेणी से हटाया गया है।


हाल ही में ओस्मानिया यूनिवर्सिटी में हुए एक कार्यक्रम में UGC के चेयरमैन एम जगदीश कुमार ने बताया कि नए नियमों के तहत किसी भी कॉलेज में अस‍िस्टेंट प्रोफेसर बनने के लिए PhD जरूरी नहीं है। विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में Assistant Professor के पदों पर भर्ती के लिए पीएचडी अनिवार्य नहीं होगी। इसके लिए अब सिर्फ यूजीसी राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा यानी UGC NET में योग्यता पर्याप्त मानी जाएगी।

बता दें कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, UGC ने देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में असिस्‍टेंट प्रोफेसर भर्ती के लिए निर्धारित योग्यताओं में साल 2021 में बदलाव किया था। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने पहले इसकी घोषणा की और फिर UGC ने असिस्‍टेंट प्रोफेसर भर्ती के लिए अनिवार्य PhD की आवश्यकता को हटा दिया था। आयोग ने अगले 2 वर्षों के लिए यह छूट बढ़ाई थी।

 जारी नियम के अनुसार, इस साल जुलाई 2023 तक PhD की अनिवार्यता खत्‍म रहने की बात कही थी। हालांकि, असिस्‍टेंट प्रोफेसर भर्ती के लिए UGC NET क्‍वालिफिकेशन कसे हमेशा अनिवार्य रखा गया।

यूजीसी के अध्यक्ष प्रो एम जगदीश कुमार उस्मानिया विश्वविद्यालय कैंपस में नवनिर्मित यूजीसी-एचआरडीसी भवन के उद्घाटन के लिए गए थे। यहां उन्होंने कहा कि राष्ट्र-एक डेटा पोर्टल विकसित किया जा रहा है, जिसमें यूजीसी के सभी दिशानिर्देश और अन्य विवरण होंगे। उन्होंने यह भी बताया कि अगले शैक्षणिक वर्ष से शिक्षा की पारंपरिक पद्धति के साथ-साथ राष्ट्रीय डिजिटल विश्वविद्यालय के माध्यम से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सीधे छात्रों तक पहुंचाई जाएगी।

PhD के लिए 6 साल

हाल ही में, यूजीसी की ओर से पीएचडी कोर्स को लेकर नए नियम लागू किए गए थे। नए नियम के तहत PhD के लिए उम्मीदवारों को एडमिशन की डेट से अधिकतम छह साल का समय दिया जाएगा। उम्मीदवारों को री-रजिस्ट्रेशन के जरिए ज्यादा से ज्यादा दो साल का और समय दिया जाएगा। यूजीसी चेयरमैन ने इसकी जानकारी दी थी। नए नियम के तहत ऑनलाइन या डिस्टेंस लर्निंग से पीएचडी पर रोक लगा दी गई है।

 इससे पहले थीसिस जमा कराने से पहले शोधार्थी को कम से कम दो शोधपत्र छपवाना पड़ता था। अब पीएचडी के नए नियमों में इसकी छूट दी गई है। रिसर्च की प्रक्रिया के दौरान दो रिसर्च पेपर छपवाने की अनिवार्यता भी खत्म कर दी गई है।


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