प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लोक सेवा आयोग की राजकीय
इंटर कॉलेजों के प्रधानाचार्य की चयन सूची को दोषपूर्ण करार दिया है और आयोग को एक माह में नए सिरे से चयन सूची जारी करने का निर्देश दिया है।
कोर्ट ने कहा है कि चयन सूची में उन्हीं अभ्यर्थियों को शामिल किया जाए,जो पद के योग्य हैं और जिन्होंने साक्षात्कार के समय तक संयुक्त निदेशक से प्रति हस्ताक्षरित तीन वर्ष का अध्यापन अनुभव प्रमाणपत्र पेश किया हो।
यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल ने अशोक कुमार व छह अन्य की याचिका पर दिया है।
आयोग ने 33 ऐसे लोगों को प्राविधिक रूप से चयन सूची में शामिल कर लिया था, जिन्होंने संयुक्त निदेशक से प्रति हस्ताक्षरित अनुभव प्रमाणपत्र दाखिल नहीं किया है। उन्हें प्रमाणपत्र बाद में दाखिल करने को कहा गया है।
ऐसे अभ्यर्थियों को चयन सूची से बाहर कर नए सिरे से चयन सूची जारी की जाएगी। आयोग ने वर्ष 2018 में संयुक्त भर्ती विज्ञापन निकाला, जिसमें आवेदन के समय पद की योग्यता रखने वालों से तीन वर्ष का अनुभव प्रमाणपत्र संयुक्त निदेशक माध्यमिक से प्रति हस्ताक्षरित कराकर जमा करना था।
लिखित परीक्षा में प्रधानाचार्य पद के लिए 248 अभ्यर्थी सफल घोषित किये गए और साक्षात्कार के लिए बुलाया गया। सभी से संयुक्त निदेशक माध्यमिक शिक्षा से प्रति हस्ताक्षरित अनुभव प्रमाणपत्र लाने का कहा गया। यह कोर्ट के आदेश पर किया गया क्योंकि कुछ लोग ऑनलाइन फार्म भरने समय अनुभव प्रमाणपत्र नहीं भेज सके थे।
कोर्ट ने उन्हें साक्षात्कार के समय प्रमाणपत्र देने की छूट दी। 11 सितंबर 2020 को परिणाम घोषित किया गया तो 33 ऐसे लोगों का नाम चयन सूची में शामिल था, जिन्होंने साक्षात्कार के समय अनुभव प्रमाणपत्र नहीं दिया था। इसे चुनौती दी गई चयन सूची से हटाने की मांग की गई।
याचियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आरके ओझा का कहना था कि अनुभव प्रमाणपत्र प्रति हस्ताक्षरित न हो पाने के कारण कई लोग साक्षात्कार नहीं दे सके। ऐसे में कुछ लोगों को चयनित कर मौका देना उन लोगों के साथ विभेदकारी है।
यह भी कहा कि आयोग अपनी ही अधिसूचना का उल्लंघन कर रहा है, जिसकी अनुमति नहीं दी जा सकती। आयोग की ओर से कहा गया कि मूल प्रमाणपत्र देखकर प्रोविजनल रूप से चयन सूची में रखा गया है।
कोर्ट ने इसे सही नहीं माना और कहा कि आयोग अपनी अधिसूचनाओं का पालन कर चयन सूची तैयार करे।
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